Painal Gaon

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  • Khanduri Hain Jaruri · 4,257 like this. 34 minutes ago · हरक सिंह के खिलाफ पुरोहितों द्वारा फतवा व संकल्प Posted: 16 Jul 2013 10:59 PM PDT SUBHARTI CHEQUE हरक सिंह के खिलाफ पुरोहितों द्वारा फतवा व जनता ने लिया संकल्प ये हरक सिंह रावते त कुडी पर आग लगोण रूद्रप्रयाग के विधायक तथा उत्तुराखण्डण के कैबिनेट मंत्री डा0 हरक सिंह रावत के खिलाफ पुरोहितों द्वारा फतवा जारी हुआ है, क्षेत्र के पुरोहितों द्वारा समूचे गांवों में हरक सिंह रावत के खिलाफ संकल्प लिवाया गया, ज्ञात हो कि रूद्रप्रयाग जनपद के अन्तुर्गत ही केदारनाथ आता है, हरक सिंह पहली बार यहां से विधायक चुने है, अब यहां से हरक सिंह के खिलाफ पुरोहितों द्वारा फतवा जारी किया गया है, तो ऐसे क्या कारण है कि समूचे क्षेत्र की जनता हरक सिंह के खिलाफ संकल्पप ले रही है, पेश है हिमालयायूके डॉट ओआरजी सम्पा दक चन्‍द्रशेखर जोशी की विशेष रिपोर्ट- ” हरक सिंह को चुनाव में वोट न देने का संकल्पद पुरोहितों द्वारा दिलवाया गया, रूद्रप्रयाग जनपद में कांग्रेस को वोट न देने का संकल्पट पुरोहित द्वारा दिलवाया गया- गढवाली भाषा में प्रकाशित संकल्पद के अनुसार- रुद्रप्रयाग जिला निवासियोँ तैँ उकां ईष्ट देवतोँ सौँ छन अगर तुमन औण वाला चुनौँ मा वोट दिणि त । यू अपणी मैढी खसमु नेतोँ तै भगै भगै कि मन । और ये हरक सिंह रावते त कुडी पर आग लगोण । आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राज्य सरकार के मंत्रियों के रुख न करने से पब्लिक पहले ही नाराज थी और अब मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने इसे हथियार के रूप में लिया है। केदारघाटी क्षेत्र में तमाम विभागों के मंत्रियों के अभी तक न पहुंचने को लेकर भाजपा की ओर से उनकी गुमशुदगी दर्ज कराने के मद्देनजर पुलिस-प्रशासन को पत्र सौंपा है। इसमें कहा गया कि जनता की सुरक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल आदि सुविधाएं मुहैया कराने का उत्तरदायित्व मंत्री परिषद का होता है, लेकिन क्षेत्र में इतनी बड़ी आपदा के बावजूद अभी तक राज्य सरकार के आपदा मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, पर्यटन एव धर्मस्व मंत्री, पेयजल मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री तक ने प्रभावित क्षेत्र में आकर जनता के दुख-दर्द को समझने की जरुरत नहीं समझी। प्रभावित जनता एक-एक दाने को तरस रही है, लेकिन कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को मानो इससे कोई सरोकार ही नहीं। ऐसे में क्षेत्र से गुम हुए इन मंत्रियों की गुमशुदगी दर्ज कराई जानी आवश्यक है। वही दूसरी ओर आपदा राहत में सरकार के कार्य जनता के जख्मों पर मरहम नहीं अपितु हरा कर रहे हैं, अगस्त्यमुनि में आपदा प्रभावित सिल्ली के पीड़ितों ने राहत राशि का चेक प्रशासन को वापस भेज दिया। पीड़ितों का आरोप है कि प्रशासन ने बिना किसी जांच व सैटेलाइट मैपिंग के ही तीनों भाइयों के नाम एक ही चेक बना दिया, जबकि इसी गांव में दो सौ मीटर पर स्थित दूसरे परिवार को अलग मापदंड के तहत चेक दिया गया हैं। स्थानीय जनता राहत सामग्री देखकर अफसोस जता रही है, यह सवाल उठा कि आखिर भोले-भाले ग्रामीणों की भावनाओं के साथ यह भद्दा मजाक क्यों? ब्यूंखी, कुणजेठी व स्यांसूगढ़ के लोग 20-25 किमी पैदल नापकर गुप्तकाशी पहुंचे थे गांव वालों ने बताया कि पिछले छब्बीस दिन में सिर्फ एक बार राशन बंटा है 25-25 किलो। इसके बाद सरकार ने कोई राहत नहीं भेजी। हेलीकॉप्टर वहां राशन उतार रहे हैं, जहां उनके उतरने की व्यवस्था है। अब मुसीबत यह है कि उस ठीये तक गांव वाले पहुंचें कैसे, जब आने-जाने के रास्ते ही नहीं रहे। बड़ी उम्मीद लेकर पीड़ित गुप्तकाशी पहुंचे तो यहां भी निराशा ही हाथ लगी। हम संस्था के प्रयासों की आलोचना नहीं कर रहे, लेकिन ऐसे प्रयासों का भी क्या करना, जो जख्मों पर मरहम लगाने के बजाए, उन्हें हरा करते हों। इसके अलावा कुणजेठी में छह, ब्यूंखी में चार व स्यांसूगढ़ में दो लोग आपदा की भेंट चढ़ गए। इन परिवारों में अब तक कोई राहत नहीं पहुंची। वह 25 किलो भी नहीं, जो सरकार ने बंटवाई थी। आस-पड़ोस वाले इन परिवारों के निवाले का इंतजाम कर रहे हैं, लेकिन कब तक, जब खुद के पास ही खाने के लिए नहीं है। वही दूसरी ओर गुजरात से 1000 लोगों के लिए विशेष मदद आई। राहत कार्यो के नोडल अधिकारी/ उपायुक्त ग्राम्य विकास विकास शैलेंद्र सिंह बिष्ट ने बताया कि इसे प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षकों की मदद से अब तक 600 पीड़ित परिवारों को बांटा गया है। इसके अलावा गौरीकुंड हाईवे समेत जिले की बंद पड़ी तमाम सड़कें अभी तक नहीं खोली जा सकी। सड़कों को खोलने में जहां संसाधनों की कमी रोड़ा बनी है, वहीं इनके न खुलने से राहत कार्य गति नहीं पकड़ पा रहे। एक माह में भी सीमा सड़क संगठन गौरीकुंड हाईवे को खोलने में लाचार नजर आया रहा है। कई स्थानों पर तो स्थानीय लोगों ने अपने जेसीबी लगाकर रास्ता खोले। तिलवाड़ा-रुद्रप्रयाग के बीच लगभग साठ मीटर के ध्वस्त पैच पर ही आवाजाही एक महीने से ठप पड़ी है। ऐसे में वर्तमान संसाधनों से तिलवाड़ा से लेकर कुंड तक के तीस किमी के ध्वस्त हाईवे को जल्द ठीक करना फिलहाल बस में नहीं दिख रहा है। इसके साथ ही 73 गांवों को जोड़ने वाले 24 मोटर मार्ग भी पिछले एक महीने से बंद पडे़ हैं। लोनिवि भी इनको खोलने में पूरी तरह असफल साबित हो रहा है। इसके पास भी मार्ग खोलने के लिए संसाधनों की भारी कमी है। मुख्यप मार्गो के अलावा गांवों की डगर बेहद कठिन है, सड़कें ध्वस्त हो ही चुकी हैं, तो गांवों को जोड़ने वाले पैदल रास्ते भी नहीं बचे हैं। जखोली ब्लॉक के सिलगढ़ और बड़मा क्षेत्र के ग्रामीण खेतों तक जाने के लिए भी पगडंडियों पर जोखिमभरा सफर करने को ग्रामीण विवश हैं। एक माह में भी सड़कें खुलवाना तो दूर, पैदल रास्तों की मरम्मत की दिशा में भी कोई पहल नहीं हो पाई है। न सिर्फ सिलगढ़ और बड़मा, बल्कि जनपद के दूसरे इलाकों का आलम भी इससे जुदा नहीं है। गौरतलब है कि जो पैदल मार्ग पिछली बरसात में क्षतिग्रस्त हो गए थे, उन्हें भी अभी तक ठीक नहीं किया जा सका है, फिर हालिया बरसात से ध्वास्तब हुए मार्गो की व्यलथा किसके सामने कहे। सिलगढ़ व बड़मा में टूटे रास्तों में मुख्यय रूप से रामपुर-सिद्धसौड़, शीशों, बंदरतोली-तैला, तुनेटा-धारकोट-कुरछोला, पांजणा पुल-चोपड़ा, चाका-डोभा, चाका-सिल्ली-कुमड़ी-बुडोली, कंडाली-सौड़-रामपुर, विजयनगर-पूर्वी चाका आदि। ज्ञात हो कि यदि मोटर मार्ग युद्व स्तसर से खोले जाते तो 100 से अधिक गांवों में खाद्यान्न की समस्या समाप्त हो जाती परन्तुस स्थातनीय विधायक व सरकार में जिम्मेभदार मंत्री हरक सिंह ने इस ओर कोई ध्याड़न नहीं दिया। इसके अलावा अब बच्चोंस की चिंता भी सता रही है, सड़कों के साथ ही पैदल रास्ते ध्वस्त होने से गांवों में स्थिति विकट है। न कहीं आ सकते हैं और न कहीं जा सकते। ऐसे में बच्चोंी को स्कूेल की चिंता सता रही है। ऊखीमठ के अन्तंर्गत कालीमठ घाटी के 24 में से मात्र तीन विद्यालय खुले, उनमें भी छात्र संख्या बेहद कम रही। त्रासदी में ऊखीमठ क्षेत्र के विद्यालयों के 176 छात्र अब भी लापता चल रहे है। आपदा के लंबे अवकाश के बाद ऊखीमठ में 15 जुलाई को जब विद्यालय खुले तो छात्र संख्या बेहद कम थी। अकेले कालीमठ संकुल की बात करें तो यहां 24 में से सिर्फ तीन विद्यालय ही खुल पाए। आपदा की मार झेल रहे ऊखीमठ ब्लाक के विभिन्न विद्यालयों से 176 छात्र अब भी लापता चल रहे है। ब्लाक के 171 प्राइमरी, जूनियर, हाईस्कूल एवं इंटर कालेज एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों में से 26 बंद रहे। संकुल-छात्र संख्या इस प्रकार है, जिसमें गुप्तकाशी-12, ल्वारा-34, राऊलेंक-7, मनसूना-06, सीतापुर-17, खडिया-18, भींगी-06, ऊखीमठ-27, कालीमठ-49 रुद्रप्रयाग जनपद में ही 14 शासकीय और अशासकीय विद्यालय भवनों को बाढ़ ने अपने आगोश में ले लिया। साथ ही बह गए सारे रेकार्ड। इनके अलावा 811 स्कूलों में से अधिकांश को जोड़ने वाले रास्ते ध्वस्त हो चुके हैं, वहीं कुछ के भवन जर्जर हाल में। मंदाकिनी, कालीगंगा व अलकनंदा के उफान पर आने से इंटर कालेज तिलकनगर समेत सात सरकारी स्कूलों के भवन जमींदोज हो गए। साथ ही सात अशासकीय विद्यालयों के भवन भी। यही नहीं, जिन विद्यालयों के भवन सुरक्षित हैं, उन तक पहुंचने के रास्ते बंद हैं। खासकर ऊखीमठ, कालीमठ और चंद्रापुरी क्षेत्रों में न सिर्फ सड़कें, बल्कि पैदल रास्ते ध्वस्त हुए हैं। ऐसे में लोग गांवों में ही ‘कैद’ होकर रह गए हैं। ध्वस्त स्कूल भवन में राजकीय इंटर कालेज तिलकनगर, हाईस्कूल कालीमठ, जूनियर हाईस्कूल फलई, गिंवाला व कुंड, प्राथमिक विद्यालय बनियाली व गवनी। इनके अलावा विभिन्न स्थानों पर सात अशासकीय विद्यालयों के भवन ध्वस्त हुए हैं। रूद्रप्रयाग जनपद में प्राथमिक विद्यालय 569, जूनियर हाईस्कूल 123 हाईस्कूल व इंटर कालेज 102 अशासकीय विद्यालय 29 59 गांवों में भूखमरी का संकट, विद्युत आपूर्ति बंद और मोटरमार्ग ध्वअस्त,- कहा जाए क्या करे जनता इसके अलावा रुद्रप्रयाग जनपद में खाद्यान्न एवं रसोई गैस की आपूर्ति नहीं हो पा रही। रसोई गैस न पहुंचने से लोगों के सामने चूल्हे का इंतजाम करना भी चुनौती बन गया है। 16-17 जून को मंदाकिनी नदी में आई विनाशकारी बाढ़ ने रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाइवे को कई स्थानों पर ध्वस्त कर दिया। कई स्थानों पर तो हाइवे का नामोनिशान भी नहीं बचा। हाइवे पर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह ठप है। आपदा में केदारघाटी व काली गंगा घाटी के मोटर मार्ग व गांवों को जोड़ने वाले पैदल मार्ग भी खत्म हो गए। इसके चलते लोग गांव से बाहर तक नहीं निकल पा रहे हैं। मोटर एवं पैदल मार्ग बाधित होने से प्रभावित 74 गांवों में से मात्र 15 तक ही सरकारी खाद्यान्न पहुंच पाया, जबकि बाकी 59 गांवों के लोग जैसे-तैसे दिन गुजार रहे हैं। गुप्तकाशी क्षेत्र के ल्वारा, लंबगौंडी, सल्या, तुलंगा, खेड़ा, भेलखुल, देवागण, ल्वानी, अंद्रवाड़ी, नमोली, देवली भणिग्राम, फलीफशालत, नागजगई आदि गांवों में बीते दो माह से रसोई गैस आपूर्ति ठप पड़ी है। रास्ते न होने से जंगलों से लकड़ी लाना भी मुश्किल है। वहीं विद्युत आपूर्ति भी इस लाइन के क्षतिग्रस्त होने से बंद हो गई है। ऊखीमठ क्षेत्र को विद्युत आपूर्ति करने वाली विद्युत लाईन काकड़ागाड में क्षतिग्रस्त हो गई। इससे ब्लाक मुख्यालय समेत पूरे क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति ठप हो गई है। 16 व 17 जून को केदारघाटी में आई आपदा से ऊखीमठ क्षेत्र को विद्युत आपूर्ति करने वाली 33 केवी लाईन कई स्थानों पर ध्वस्त हो गई थी। गांवों में रोजाना दो-दो घंटे की विद्युत आपूर्ति करवाई जा रही थी, लेकिन यह लाईन क्षतिग्रस्त हो जाने से अब समूचा क्षेत्र अंधेरे में है। कालीमठ घाटी के 75 परिवारों वाली ग्राम पंचायत जाल तल्ला के ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने तो हमें भूखों मरने के लिए ही छोड़ दिया था। लंबे इंतजार के बाद छह दिन पहले आपदा राहत के नाम पर प्रति परिवार पांच-पांच, सात-सात किलो राशन तो उपलब्ध कराई, लेकिन आधी-अधूरी और अब वह भी खत्म हो चुकी है। शुक्र है, गुप्तकाशी में राहत लेकर आ रही स्वयंसेवी संस्थाओं का, जिनके माध्यम से थोड़ी मदद मिल रही है। गांव के लोग जैसे-तैसे जोखिम उठा मीलों का सफर पैदल तय कर गुप्तकाशी पहुंच वहां से दो-वक्त का राशन ले जाने को विवश हैं। हालांकि, सरकार ने पूर्व में भरोसा दिलाया था कि दोबारा राशन भेजेंगे, लेकिन यह कहां है किसी को नहीं मालूम। सरकारी तंत्र को ग्रामीणों की परवाह कहां। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि ग्रामीणों तक दो जुलाई को सरकारी राहत तो पहुंची, मगर वह भी मानो जख्मोंक पर नमक डालने वाली थी। जालतल्ला के प्रधान रामचंद्र सिंह का कहना है कि इस राहत के नाम पर ग्रामीणों को एक-एक कंबल और पांच-पांच, सात-सात किलो चावल, आटा, आधा किलो दाल, ढाई सौ ग्राम चीनी ही मिल पाई। उनका कहना है कि इतनी कम राशन में क्या किसी का गुजारा हो सकता है। तब कहा गया था कि जल्द ही राशन की दूसरी खेप पहुंच जाएगी, जो अभी तक नहीं आई है। वह कहते हैं कि यदि सरकार के ही भरोसे रहते तो भूखों मरने की नौबत आ जाती। वह तो शुक्र है कि गुप्तकाशी में तमाम संस्थाएं प्रभावितों के लिए राशन लेकर पहुंच रही हैं, जिनसे मदद मिल रही है। गांव के लोग कई किमी की दूरी पैदल तय कर गुप्तकाशी से इन संस्थाओं के माध्यम से दो वक्त का राशन सिर पर ढोकर जैसे-तैसे ले जा रहे हैं। यदि ये संस्थाएं नहीं होती तो..। सरकार ने तो हमें अपने हाल पर ही छोड़ दिया था। रुद्रप्रयाग में जिले की 46 सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से जुडे़ 90 गांवों तक अभी भी सरकारी राहत नहीं पहुंच पाई है। इसे गांवों तक पहुंचाना चुनौती बना हुआ है। वजह, गांवों को जोड़ने वाले पैदल रास्ते बुरी तरह क्षतिग्रस्त हैं और ढुलान के लिए कोई अतिरिक्त राशि भी सरकार से स्वीकृत नहीं हो पाई है। वहीं सरकारी स्तर पर निशुल्क खाद्यान्न जिले में पहुंचा ही नहीं है। त्रासदी से प्रभावित कई गांव ऐसे हैं जहां सरकार का खाद्यान्न नहीं पहुंच पाया है। जिले में कुल 378 सस्ते गल्ले की दुकानों में 45 दुकानें ऐसी शामिल हैं, जहां ढुलान से ही 90 गांव को राशन पहुंच सकता है। लेकिन, गांवों के पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त होने से समस्या बढ़ गई है। घोड़े व खच्चरों से राशन पहुंचाने का दावा किया गया लेकिन ढ़ुलान का पैसा ही अब तक स्वीकृत नहीं हो पाया है। वही दूसरी ओर, पीड़ितों को निशुल्क खाद्यान्न देने की बात कही जा रही है, जिसमें आटा, चावल के साथ ही मिट्टी तेल, दाल, नमक व मसाले भी शामिल हैं। यह निशुल्क राशन जिले में पहुंचा ही नहीं है। हालांकि, जो राशन अब तक दिया गया है, वह जून व जुलाई का कोटा बताया जा रहा है। इसमें भी गेहूं व चावल ही दिया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रभावित इसे पकाएंगे कैसे। न उन्हें मसाले मिले, न भोजन पकाने को मिट्टी का तेल। विमला रावत, जिला पंचायत सदस्य का कहना है कि चाका, बुडोली, फलाटी में सरकार की ओर ग्रामीणों को पांच किलो गेहूं, पांच किलो चावल दिया गया है। मिट्टी तेल, मसाले, खाने का तेल नहीं दिया गया है। सरकार की नजर उन पीड़ितों तक जा ही नहीं रही जो दूर दराज के गांवों में कैद होकर रह गए हैं। राहत की पोटली सड़कों के इर्द-गिर्द पटकी जा रही है, वहां तक आने का इन लोगों के पास कोई साधन ही नहीं है और सरकार द्वारा देहरादून व दिल्‍ली में बढ चढ कर दावा किया जा रहा है, रुद्रप्रयाग जिले में सर्वाधिक तबाही झेलने वाली ऊखीमठ तहसील के कालीमठ, चंद्रापुरी क्षेत्र के तीन दर्जन से ज्यादा गांवों में राहत का इंतजार हो रहा है। यहां आपदा से 181 गांव प्रभावित हैं। Like · · Share 17 people like this.
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